Jwar Ki Kheti | हमारे भारत देश में ज्वार की खेती मोटे दाने वाली अनाज फसल और हरे चारे के रूप में की जाती है. बता दे इसकी खेती ज्यादातर कम वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है. इसके पौधों की लंबाई लगभग 10 से 12 फिट तक होती है जिसे आप चारे के लिए कई बार कटाई कर सकते है. ज्वार की खेती में हमारा भारत देश विश्व में तीसरे स्थान पर है. यदि आप खेती में अच्छा मुनाफा चाहते है तो फिर आपको ज्वार की खेती करनी चाहिए. इसकी खेती से जुडी सभी प्रकार की आवश्यक बातो को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़े.
प्रिय किसान भाईयों, आज हम आपको इस लेख में जानकारी देंगे कि ज्वार की खेती कैसे करे? ज्वार की खेती के लिए उत्तम जलवायु? ज्वार की खेती का समय? देसी ज्वार की खेती? शंकर ज्वार की खेती? लाल ज्वार की खेती? ज्वार की खेती के लाभ? ज्वार की खेती में खाद? ज्वार की खेती में लागत व मुनाफा? Jwar Ki Kheti आदि की विस्तारपूर्वक जानकारी आपको इस पोस्ट में मिलेगी.
ज्वार की खेती की जानकारी
भारतीय कृषि में ज्वार की खेती एक महत्वपूर्ण खेती प्रणाली है जो प्रमुख भूमिका निभाती है. ज्वार, एक अहारी अनाज है जो अच्छे पोषण से भरपूर होता है और स्वास्थ्य के लाभ के लिए भी महत्वपूर्ण है. ज्वार, सीधे भी बोए जा सकते है या फिर इसे अन्य फसलों के साथ मिश्रित खेती करके भी उगाया जा सकता है. यदि आपके खेत में बुवाई के समय नमी रहती है तो फिर ज्वार के बीज को पूरी तरह से अंकुरित होने में लगभग 8 से 10 दिनों का समय लगता है.
इसकी खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि अच्छी मानी जाती है. उचित जलनिकासी वाली भारी मिट्टी में भी इसकी बुवाई की जा सकती है. ध्यान रहे कि भूमि का पी.एच मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए. इसके अलावा, ज्वार की खेती 30 से 70 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है.
ज्वार की खेती का समय
बता दे, उत्तरी भारत में ज्वार की बुवाई का उचित समय जून से जुलाई माह तक का माना जाता है क्योंकि ज्वार की अगेती फसल में फूल बनते समय अधिक वर्षा की संभावना रहती है. यदि सिंचाई के पर्याप्त साधन मौजूद हो तो फिर आप ग्रीष्मकालीन ज्वार की खेती (Jwar Ki Kheti) भी आसानी से कर सकते है. इसके लिए आपको ज्वार की बुवाई फरवरी से मार्च माह में करनी होगी. बुवाई के समय इस बात का विशेष ध्यान रखना है कि बीज दर 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए.
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ज्वार की खेती करने वाले राज्य
हमारे भारत देश में ज्वार की खेती सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात राज्यो में की जाती है.
ज्वार की खेती के लिए जलवायु
बता दे ज्वार एक खरीफ फसल है, इसलिए इसकी खेती खरीफ के मौसम में की जाती है. इसकी खेती के शुरुआती समय में ज्वार के बीज अंकुरित होने के लिए न्यूनतम तापमान 9 से 10 डिग्री सेल्सियस तक उपयुक्त माना जाता है. पौधों की बढ़वार के लिए सर्वोत्तम औसत तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस की आवश्यकता होती है.
ज्वार की उन्नत किस्म
वर्तमान समय में ज्वार की खेती (Jwar Ki Kheti) से अधिक पैदावार के लिए अच्छे और उन्नत बीजों का होना बहुत जरूरी है. आपको क्षेत्र की जलवायु एवं मिट्टी के अनुसार ही अनुमोदित किस्मों और प्रमाणित बीजो का चयन करना चाहिए. ज्वार की कई किस्में बाजार में उपलब्ध है जिसकी जानकारी आपको नीचे दी गई है:
- पूसा चरी
- हरा सोना
- पी.सी.एच 106
- सी.एस.जी 59-3
- सी.एस.बी 13
- पंजाब सुडेक्स
- श्री राम 5001
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ज्वार की खेती कैसे करे?
बता दे आप ज्वार की खेती करके आसानी से मोटा मुनाफा कमा सकते है. ज्वार की खेती (Jwar Ki Kheti) करने के लिए निम्न चरणों का पालन करे:
- ज्वार की खेती करने के लिए आपको सबसे पहले खेत को अच्छे से तैयार कर लेना है. इसके लिए आपको एक बार गहरी जुताई करनी है.
- इसके बाद, आपको आवश्यकता अनुसार सड़ी खाद डाल देनी है.
- अब आपको कुछ समय के लिए खेत को खाली छोड़ देना है ताकि भूमि का पोषण बना रहे.
- बुवाई के 15 दिन पहले एक बार पुनः गहरी जुताई कर ले.
- इसके बाद, खेत को समतल करवा लेना है ताकि जलभराव न हो.
- बीजों का सही चयन करे ताकि आपको अच्छी पैदावर मिले. ध्यान रखे आपको प्रमाणित बीजों का ही चयन करना है.
- ध्यान रहे कि बीजों को सीड ड्रिल की मदद से बोना है.
- विशेष रूप से ध्यान रखे कि बीजों को 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई में बोये.
- अब 8 से 10 दिनों में ही ज्वार के बीज पूरी तरह से अंकुरित हो जाएंगे और पौधे बाहर निकलने लगेंगे.
- इसके बाद, समय- समय पर सिंचाई और उर्वरक दे. अब खरपतवार पर भी ध्यान दे.
शंकर ज्वार की खेती
बता दे शंकर ज्वार, जिसे अंग्रेजी में “Pearl Millet” भी कहा जाता है. यह एक महत्वपूर्ण अनाज है जो भारत में व्यापक रूप से उगाया जाता है. इसका पौधा लगभग 8 फिट ऊंचा होता है. इसकी विशेषता यह है कि यह कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है. शंकर ज्वार का उपयोग अन्न, चारा और अन्य उत्पादों के लिए होता है. सही ढंग और तकनीक से खेती करने से किसान अच्छी उपज हासिल कर सकता है.
लाल ज्वार की खेती
यह एक अहम अनाज है जिसे गर्म और सूखे प्रदेशों में उगाया जाता है. लाल ज्वार को “रेड सोरगम” भी कहा जाता है. इसकी खेती के लिए आपको मिट्टी, सिंचाई, बीज का चयन और उर्वरक की अच्छी देखभाल की जरुरत होती है. इसकी फसल को रोग और किटाणुओ से बचाने के लिए नीम के तेल का छिड़काव करे. लाल ज्वार की मांग बाजार में ज्यादा रहती है इसलिए आपको इस ज्वार का भाव भी अच्छा मिल जाएगा.
हाइब्रिड ज्वार की खेती
बता दे हाइब्रिड ज्वार की खेती किसानों के लिए एक प्रमुख विकल्प है जो उच्च उत्पादकता और पोषण स्तर को बनाए रखने का एक समृद्धि से भरा माध्यम प्रदान करता है. यह ज्वार की विभिन्न संग्राहणो को मिश्रित करके उत्कृष्ट गुणवत्ता और प्रतिरक्षा प्रदान करने का लाभ उठाता है. बता दे, हाइब्रिड ज्वार के पौधे का विकास शीघ्र होता है और इसमें उच्च पोषण मूल्य होते है, जो फसल की मजबूती प्रदान करता है.
ज्वार की वैज्ञानिक खेती
भारत देश में ज्वार की वैज्ञानिक खेती एक महत्वपूर्ण कृषि प्रवृति है जो अनेक क्षेत्रों में लाभकारी है. इसकी वैज्ञानिक खेती में उन्नत ज्वार किस्में, उपयुक्त उर्वरकों का प्रयोग और सही किसानी तकनीकियों का इस्तेमाल करके उत्पादकता में बढ़ोतरी हो सकती है. ज्वार के पौधे को मजबूत बनाने के लिए आवश्यकतानुसार खाद देना भी जरुरी होता है. इन सभी चीजों को ध्यान में रखते हुए ज्वार की वैज्ञानिक खेती की जाती है. वैज्ञानिक खेती से किसान को अधिक मुनाफा होगा और खाद्य सुरक्षा में सुधार होगा.
ज्वार की खेती में सिंचाई
बता दे ज्वार की खेती के लिए सामान्य सिंचाई उपयुक्त होती है. वहीं, हरे चारे के लिए की गई खेती में पौधों को अधिक पानी की जरूरत होती है. इस दौरान पौधों को 5 से 6 दिनों के अंतराल में सिंचाई कर देनी चाहिए, ताकि पौधा ठीक से विकास कर सके और फसल कम समय में कटाई के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाए.
ज्वार की खेती में खाद
बुवाई से पहले अपने अनुसार सड़ी गोबर की खाद या रूडी की खाद मिट्टी में डाले. बिजाई के शुरुआती समय में नाइट्रोजन 20 किलोग्राम (44 किलोग्राम यूरिया), फास्फोरस 10 किलोग्राम (20 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट) और पोटाश 10 किलोग्राम (16 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश) की मात्रा का प्रति एकड़ में छिडकाव करे. फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा, नाइट्रोजन की आधी मात्रा से बिजाई के समय डाले और बची हुई खाद बिजाई के एक माह बाद डाले.
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ज्वार की खेती से लाभ
हमारे देश में ज्वार की खेती (Jwar Ki Kheti) के कई फायदे होते है जो कृषि के क्षेत्र में सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. इनमे से मिलने वाले कुछ प्रमुख लाभों की जानकारी नीचे दी गई है:
- ज्वार एक लाभकारी फसल है जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते है.
- ज्वार खाद्य फसलों में से एक है और इसे मोटे अनाज के रूप में हमारे घरो में उपयोग किया जाता है.
- ज्वार के पौधों को पशुओं के चारे के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है.
- इसके खेती से छोटे श्रमिक लोगो को रोजगार का अवसर मिलेगा.
ज्वार की खेती में लागत व मुनाफा
यदि आप ज्वार की खेती 1 हेक्टयर के खेत में करते है तो फिर आपको 20 से 25 क्विंटल की पैदावार मिल सकती है. वैसे, पैदावार किस्म के ऊपर भी निर्भर करती है. बता दे ज्वार का बाजारी भाव 30 से 35 रुपए प्रति किलोग्राम के बीच ही रहता है. इसके हिसाब से किसान 1 हेक्टयर के खेत से लगभग 1 लाख से 1.5 लाख रुपए आसानी से कमा सकता है. इसके साथ ही आपको अपने पशुओं के लिए चारा भी मिल जाएगा. यदि लागत की बात करे तो, इसकी खेती में लगभग 25 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर की लागत आती है.
FAQ- ज्यादातर पूछे जाने वाले सवाल
ज्वार की फसल कितने दिनों में तैयार होती है?
ज्वार की फसल को पूरी तरह से तैयार होने में लगभग 90 से 115 दिनों का समय लगता है. वैसे, तैयार होने का समय किस्म के ऊपर भी निर्भर करता है.
ज्वार की बीज दर कितनी होती है?
यदि आप ज्वार की खेती करते है तो फिर आपको बीज दर की सही जानकारी होनी चाहिए. बता दे, आपको इसकी बुवाई में लगभग 15 किलोग्राम प्रति एकड़ की बीज दर रखनी है.
विश्व में सबसे ज्यादा ज्वार कहा होती है?
विश्वभर में सबसे ज्यादा ज्वार नोवा स्कोटिया (कनाडा) में फांडी की खाटी में होते है.
भारत में ज्वार का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौनसा है?
भारत में ज्वार का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य महाराष्ट्र है.
सबसे अच्छा ज्वार का बीज कौनसा है?
सबसे अच्छा ज्वार बीज की बात करे तो वह सी.एच.एच 16 है, जो किसानों के बीच बहुत ही लोकप्रिय है. यह किस्म पैदावार में भी काफी अच्छी मानी जाती है.