Hing Ki Kheti: हींग की खेती कैसे करे? लंबे टाइम तक होगी बढ़िया कमाई

Hing Ki Kheti | हींग एक मसाला वर्गी फसल है तथा यह एक बहुवर्षीय पौधा भी है. 5 साल के बाद इसकी जड़ों से ओलियो गम निकलता है जिसे शुद्ध हींग कहते है. बता दें, मसाला फसलों में हींग का अपना एक अहम स्थान है क्योंकि यह एक ऐसी मसाला फसल है जिसकी देश और विदेश में मांग सदैव उच्च स्तर पर बनी रहती है. वैसे, मांग के लिहाज से हींग किसानों के लिए काफी लाभ देने वाली फसल है. भारतीय बाजारों में पूरे साल हींग की मांग रहने के साथ किसान हींग की खेती के नवीनतम तरीकों से और अच्छा लाभ कमा सकते है.

Hing Ki Kheti
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प्रिय किसान भाईयों, आज हम आपको इस लेख में बताने जा रहे है कि हींग की खेती कैसे करे? हींग की खेती करने वाले राज्य? हींग की खेती के लिए उत्तम जलवायु? हींग की उन्नत खेती? हींग की खेती का समय? हींग की खेती के लाभ? हींग की खेती में खाद? हींग की खेती में लागत व मुनाफा? Hing Ki Kheti आदि.

हींग की खेती की जानकारी

हींग एक सौंफ प्रजाति का पौधा है जिसकी लंबाई 1 से 1.5 मीटर तक की होती है. बता दें, हींग की खेती एक लाभकारी कृषि प्रक्रिया है जिसकी खेती विभिन्न क्षेत्रों में की जा रही है. इसकी खेती के लिए सही जलवायु, मिट्टी और उपयुक्त प्रबंधन की आवश्यकता होती है. उचित तापमान और अच्छी सिंचाई प्रणाली वाले क्षेत्रो में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है. इसके पौधों की अच्छी देखरेख और समय- समय पर सही उर्वरक का उपयोग, उच्च उत्पादकता की गारंटी देता है.

हींग की खेती के लिए रेतीली और चिकनी मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच मान 6 से 7 के बीच में होना चाहिए, इस बात का आपको विशेष ध्यान रखना है.

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हींग की खेती का समय

बता दें, हींग के बीजों को शुरुआती वसंत के मौसम के दौरान सीधे मिट्टी में प्रत्यारोपित किया जाता है. जब बीज ठंडी और नम जलवायु परिस्थितियों के संपर्क में आता है तो अंकुरण की प्रक्रिया शुरू होती है. बीज बुवाई के समय आपको प्रत्येक बीज 2 फिट की दूरी के साथ मिट्टी में प्रत्यारोपित कर देना है.

हींग की खेती वाले राज्य

भारत देश में हींग की खेती सर्वाधिक जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है.

हींग की खेती के लिए जलवायु

हमारे भारत देश में हींग की खेती केवल पहाड़ी क्षेत्रों में ही की जा सकती है. वैसे, कम ठंडा और शुष्क वातावरण इसकी फसल के लिए अच्छा माना जाता है. इसके अलावा 20 से 30 डिग्री तापमान वाले क्षेत्रों में हींग की खेती (Hing Ki Kheti) आसानी से कर सकते है.

हींग की उन्नत खेती

विश्वभर में हींग की लगभग 130 किस्में उगाई जाती है, परंतु हमारे भारत देश में हींग की केवल 2 से 3 प्रजातियां ही उगाई जाती है, जो इस प्रकार है:

  • दूधिया सफेद हींग : इस हींग को काबुली सफेद भी बोला जाता है तथा यह सफेद व पीली घुलनशील होता है. इसके 3 रूप होते है जैसे मास, टिमर्स और पेस्ट. यह शुद्ध रूप में गोल, पतला राल होता है जो 30 mm आकार वाला भूरा और फीका पीला होता है.
  • लाल हींग : लाल हींग में सल्फर मौजूद होता है जिस वजह से इसमें अधिक तीखी गंध होती है. यह काले व गहरे रंग वाले तेल में घुलनशील है जिसमे गोंद व स्टार्च मिलाकर ईट के रूप में बेचते है.

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हींग की खेती कैसे करें?

बता दें, हींग की खेती करके किसान भाई आसानी से मोटा मुनाफा कमा सकते है. हींग की खेती (Hing Ki Kheti) करने के लिए निम्न चरणों का पालन करे:

  • इसकी खेती करने के लिए आपको हींग के बीजों को ग्रीन हाउस में लगभग 2- 2 फीट की दूरी पर बोना चाहिए.
  • 5 से 7 दिनों के बाद जब बीज अंकुरित होकर पौधा बाहर निकलने लगे, तब आपको इसे 5- 5 फीट की दूरी पर लगाना है.
  • इसके बाद, आपको अपने हाथो से जमीन में नमी का पता कर लेना है और जरूरत के हिसाब से पानी का छिड़काव करना है.
  • हींग के पौधों को नमी देने के लिए आप गीली घास का भी उपयोग कर सकते है.
  • इसके पौधे को पेड़ बनने में लगभग 4 से 5 वर्षो का समय लगता है.
  • इसके पौधों की जड़ो के बहुत करीब से काटकर सतह के संपर्क में लाया जाता है जिससे कटे हुए स्थान से दूधिया रस का स्त्राव होता है.
  • यह प्रदार्थ जब हवा के संपर्क में आने से कठोर हो जाता है तब इसे निकाला जाता है. वहीं, जड़ का एक और टुकड़ा अधिक गोद निकालने के लिए कटा जाता है.

हींग की जैविक खेती

हमारे देश में हींग की जैविक खेती एक सुस्त और प्राकृतिक तरीके से उत्पन्न अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पादों की खेती का एक प्रमुख तरीका है. इसमें किसानों को शानदार उपज मिलती है, जिसे बाजार में आकर्षक मूल्य पर बेचा जा सकता है. हींग की जैविक खेती में केवल प्राकृतिक उर्वरकों का ही उपयोग होता है.

हींग की खेती में सिंचाई

बता दें, इसकी फसल में बीज अंकुरण की प्रक्रिया के दौरान ही सिंचाई की आवश्यकता होती है. यदि आपके खेत की मिट्टी में नमी हो तो फिर आपको इसमें सिंचाई नही करनी चाहिए. अगर आप फिर भी सिंचाई कर देते है तो यह आपकी फसल को नुकसान पहुंचा सकता है.

हींग की खेती में खाद

हमारे देश में हींग के खेत को तैयार करते समय आपको प्रति हेक्टेयर के खेत में लगभग 6 से 7 टन सड़ी कंपोस्ट खाद का उपयोग करना है. इसके अलावा 40 किलोग्राम स्फून, 60 किलोग्राम नाइट्रोजन और 40 किलोग्राम पोटाश की मात्रा हींग के खेत में डाले.

हींग की खेती के लाभ

हींग की खेती से कई तरह के लाभ हो सकते है, परंतु हमने आपको नीचे कुछ प्रमुख लाभों की जानकारी दी है, जोकि कुछ इस प्रकार से है:

  • हींग की उच्च मांग के कारण किसानों को अच्छा आर्थिक लाभ हो जाता है.
  • हींग का उपयोग आयुर्वेद में बहुत उपयोगी माना जाता है. इसका उपयोग औषधि और स्वास्थ्य के लाभ के लिए किया जा सकता है.
  • हींग की खेती से आसपास के श्रमिक लोगो को रोजगार का अवसर भी मिलेगा.

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हींग की खेती में लागत व मुनाफा

यदि लागत की बात करे तो हींग की खेती में प्रति हेक्टर करीबन 1 लाख रुपए की लागत आती है. जानकारी लिए बता दें, 1 हेक्टयर के खेत में लगभग 400 से 500 पौधों की खेती एक साथ की जा सकती है. वहीं, इसके पौधे को पूरी तरह से तैयार होने में लगभग 4 से 5 साल का समय लगता है. इसके बाद प्रति पेड़ से लगभग 5 किलोग्राम हींग निकलता है जिसका बाजारी भाव लगभग 50 से 60 रुपए किलोग्राम होता है. इस हिसाब से किसान भाई एक बार की खेती से लगभग 1 से 2 लाख रुपए/ प्रति माह आसानी से कमा सकते है.

FAQ- ज्यादातर पूछे जाने वाले सवाल

हींग उगाने में कितना समय लगता है?

हींग उगाने में लगभग 3 से 4 साल का समय लगता है. हाल ही में कुछ ऐसी किस्में भी उन्नत हुई है जो इससे भी कम समय में तैयार हो जाती है.

शुद्ध हींग की पहचान क्या है?

हींग में प्योरिटी की पहचान करने के लिए आप मोमबत्ती का उपयोग कर सकते है. इसके लिए जलती हुई मोमबत्ती पर हींग रखे. यदि हींग शुद्ध होगा तो आग के संपर्क में आते ही जलने लगेगा और नकली होगा तो नहीं जलेगा.

सबसे अच्छा हींग कौन सा है?

सबसे अच्छा और किफायती ब्रांड का हींग MDH का है क्योंकि इस ब्रांड की हींग की गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है और यह बहुत किफायती भी होती है.

हींग इतना महंगा क्यों है?

बता दे, हींग का महंगा होना उच्च लागत भी एक कारण है. वहीं, इसे उगाना और काटना भी एक कठिन प्रक्रिया है जिसके कारण यह एक महंगी फसल है.

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