Torai Ki Kheti: तोरई की खेती कैसे करे? साल में 2 बार करे खेती; कमाए 7 लाख रूपए

Torai Ki Kheti | तोरई हमारे भारत देश के लगभग सभी प्रदेशों में एक लोकप्रिय सब्जी है. इसके पौधे बेल के रूप में वृद्धि करते है इसलिए इसे लतादार सब्जियों की श्रेणी में रखा गया है. तोरई की खेती की सबसे बड़ी खासियत है कि इसका बाजार भाव अच्छा मिल जाता है. वहीं, इसे साल में 2 बार ग्रीष्म ऋतु और खरीफ सीजन में उगाया जा सकता है. तोरई को कई क्षेत्रों में तोड़ी, झिंग्गी और तुरई के नाम से भी जाना जाता है. इसके चलते तोरई की खेती करना बहुत ही फायदेमंद है क्योंकि यह कम समय में तैयार हो जाती है और मुनाफा अच्छा देती है. तो आइए जानते है तोरई की खेती की उन्नत तकनीक के बारे में जिससे आपको अधिक उत्पादन प्राप्त हो सके.

Torai Ki Kheti
Torai Ki Kheti

यदि आप भी एक जागरूक किसान है तो फिर आपको तोरई की खेती करनी चाहिए क्योंकि इस खेती में लागत कम और मुनाफा ज्यादा मिलता है. इस लेख में हम आपको तोरई की खेती से संबंधित पूरी जानकारी देंगे, जैसे कि तोरई की खेती कैसे करे? काली तोरई की खेती? तोरई की खेती के लिए जलवायु? तोरई की खेती का समय? तोरई की खेती से मुनाफा? तोरई की उन्नत किस्में? तोरई की खेती में खाद और सिंचाई? तोरई की खेती में लागत व मुनाफा? Torai Ki Kheti आदि.

तोरई की खेती की जानकारी

हमारे भारत देश में तोरई की खेती एक महत्वपूर्ण कृषि व्यवसाय है जिसे विभिन्न क्षेत्रों में उगाया जाता है. इसका पौधा वर्षा के मौसम में अधिक विकास करता है. इस मौसम में बीज को अंकुरित होने के लिए मात्र 4 से 5 दिनों का ही समय लगता है. इसकी खेती के लिए उचित जलवायु और मिट्टी का चयन अहम है. तोरई के पौधे को सही तरीके से पर्याप्त पानी, उर्वरक और कीटनाशक देना भी आवश्यक है तथा उचित प्रबंधन के साथ इसकी खेती से किसान अच्छी उपज और आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकता है.

तोरई की अच्छी फसल के लिए कार्बनिक पदार्थों से युक्त उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है. इसकी खेती में उचित जल निकासी वाली भूमि की जरूरत होती है. वैसे, सामान्य 6 से 7 पी.एच मान वाली भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है. यदि आपकी भूमि का पी.एच सामान्य नहीं है तो फिर इसका प्रभाव उत्पादन पर भी पड़ सकता है.

यह भी पढ़े : कद्दू की खेती कैसे करे

तोरई की खेती करने वाले राज्य

भारत के अलावा भी कई देशों में इसकी खेती की जाती है, परंतु तोरई उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है. तोरई की खेती (Torai Ki Kheti) भारत के लगभग सभी प्रदेशों में होती है; परंतु सबसे अधिक उत्पादन मध्यप्रदेश, केरल, कर्नाटक, बंगाल, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा में होता है.

तोरई की खेती का समय

अगर आप तोरई की खेती करना चाहते है तो फिर आपको इसके बुवाई के समय का विशेष ध्यान रखना है. यदि आप इसकी खेती गर्मी के मौसम में करना चाहते है तो मार्च से अप्रैल का समय बुवाई के लिए उपयुक्त माना जाता है. वहीं, खरीफ मौसम में जून से जुलाई महीने को उपयुक्त माना जाता है. आपको बुवाई के समय बीज दर का भी विशेष ध्यान रखना है. 5 से 6 किलोग्राम बीज का उपयोग प्रति हेक्टेयर उपयुक्त माना जाता है.

तोरई की खेती के लिए जलवायु

बता दे, तोरई की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त मानी जाती है. वैसे, इसके पौधों को अच्छे से विकास करने के लिए शुष्क और आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है. अधिक ठंडी जलवायु इसके पौधे सहन नही कर सकते है तथा इसके पौधे सामान्य तापमान में ही अच्छे से अंकुरित होते है. इसके पौधे अधिकतम 35 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है. कुल मिलाकर इसके पौधों को अच्छे से विकास करने के लिए सामान्य तापमान की ही जरुरत होती है.

तोरई की उन्नत किस्में

आज के समय भारतीय बाजारों में तोरई की कई प्रजातियां देखने को मिल जाती है. वैसे, किसान भाईयों को केवल उन्नत किस्म के बीजों को ही खरीदना चाहिए जो आपके क्षेत्र की जलवायु में अच्छा उत्पादन दे सके. यहां नीचे आपको तोरई की उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी दी गई है जोकि इस प्रकार है:

  • पूसा नसदार
  • पूसा चिकनी
  • पूसा स्नेह
  • पूसा सुप्रिया
  • काशी दिव्या
  • कल्याणपुर चिकनी
  • सरपुतिया
  • घिया तोरई
  • कोयम्बूर 2

तोरई की वैज्ञानिक खेती

बता दे, तोरई की वैज्ञानिक खेती का मुख्य उद्देश्य उचित उत्पादन, गुणवत्ता और लाभकारी प्रणाली को बनाए रखना होता है. इसमें बीज का चयन, बुवाई की तकनीक, जल संसाधन, प्रबंधन, उर्वरकों का उपयोग, बीमारियों और कीट नियंत्रण, उचित कटाई तकनीकी और पोषण व्यवस्था शामिल होती है. तोरई की वैज्ञानिक खेती करके किसान भाई अधिक उत्पादन और मुनाफदायक प्रणालियों का लाभ उठा सकते है. इससे उत्पादन में वृद्धि होती है और पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है.

यह भी पढ़े : सीताफल की खेती कैसे करे

तोरई की खेती कैसे करे?

यदि आप तोरई की खेती सही विधि से करते है तो फिर आपको अच्छी पैदावार मिल सकती है तथा आपको अच्छा मुनाफा होगा. सरल तथा सही विधि से तोरई की खेती (Torai Ki Kheti) करने के लिए आपको निम्नलिखित चरणों का पालन करना होगा:

  • तोरई की खेती के लिए आपको सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की अच्छे से जुताई कर लेनी है.
  • इसके बाद, आपको उचित मात्रा में खाद डालकर एक बार पुनः जुताई करनी है. अब खाद और मिट्टी आपस में अच्छी तरह से मिश्रित हो जाएगी.
  • फिर आपको पाटा की मदद से मिट्टी को समतल करना है ताकि जलभराव की समस्या न हो.
  • इसके बाद, आपको उचित प्रमाणित बीजों का चयन करना है. प्रमुख किस्मो की सूची ऊपर दी गयी है.
  • आपको बुवाई के समय बीज दर का भी विशेष ध्यान रखना है. 5 से 6 किलोग्राम बीज का उपयोग प्रति हेक्टेयर उपयुक्त माना जाता है.
  • अब बीज को अच्छे से तैयार करना है. उसके बाद ही आपको बुवाई शुरू करनी है.
  • एक सप्ताह के अंदर ही बीज अंकुरित होकर बाहर निकल आएगा.
  • इसके बाद, समय- समय पर सिचाई करे और खरपतवार हटा दे.

काली तोरई की खेती

हमारे देश में काली तोरई को “लूफा” काली तोरी के नाम से भी जाना जाता है. इसके बेलों का कद लगभग 30 फुट के आसपास होता है. काली तोरई के फल बेलनाकार आकार के और इसका बाहरी छिल्का नरम हरे रंग का होता है. फलों का अंदरुनी गुद्दा सफेद रंग का रेशे वाला होता है और इसका स्वाद थोड़ा करेले की तरह कड़वा होता है. काली तोरई की खेती भारत में एक महत्वपूर्ण कृषि उत्पादन है. यह फसल गर्मी के मौसम में अच्छी पैदावार देती है और साथ ही इसकी खेती आसान भी होती है.

तोरई की खेती में सिंचाई

यदि इसके बीजों की रोपाई जून के महीने में की गई है तो प्रारंभिक सिंचाई को बीज रोपाई के तुरंत बाद करना होता है. उसके बाद, 4 से 5 दिनों के अंतराल में हल्की- हल्की सिंचाई की जाती है ताकि खेत में नमी बनी रहे और बीजों का अंकुरण ठीक से हो सके. इसके अलावा, बारिश के मौसम में की गई रोपाई के लिए पौधे को जरूरत पड़ने पर ही पानी देना होता है.

तोरई की खेती में खाद

बता दे, तोरई की खेती करने से पहले खेत को अच्छे से तैयार करना होता है. इसके लिए आपको 15 गाड़ी सूखी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देनी है. वहीं, 40 से 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 से 35 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा के समय ही समान रूप से मिट्टी में मिला देना चाहिए. नाइट्रोजन की बची हुई शेष मात्रा 45 दिन बाद पौधों की जड़ों के पास डाल देनी चाहिए.

तोरई की खेती के लाभ

बता दे, तोरई की खेती से व्यापारिक और आर्थिक लाभ कमाया जा सकता है, परंतु इसमें सावधानी और अच्छी प्रबंधन की आवश्यकता होती है. यहां कुछ तोरई की खेती (Torai Ki Kheti) के मुख्य लाभ है:

  • तोरई एक लाभदायक फसल है जिससे आप अच्छा- खासा मुनाफा कमा सकते है.
  • तोरई की फसल को कीट तथा रोग कम ही लगते है.
  • इस खेती में लागत भी कम ही आती है और मुनाफा ज्यादा होता है.
  • इसकी खेती करने पर छोटे श्रमिको को भी रोजगार का अवसर भी मिलता है.

यह भी पढ़े : अरबी की खेती कैसे करे

तोरई की खेती में लागत व मुनाफा

हमारे देश भारत में तोरई की फसल को तैयार होने में लगभग 80 से 90 दिनों का समय लगता है. इसके फलों की तुड़ाई कच्चे के रूप में की जाती है, जिसका उपयोग सब्जी के रूप में करते है. यदि हम इस फसल की लागत की बात करे तो, इसमें तोरई बुवाई से लेकर तोरई की कटाई तक लगभग 60 से 70 हजार रुपए/ प्रति हेक्टेयर की लागत आती है.

उन्नत किस्मों के आधार पर तोरई की पैदावार लगभग 250 से 300 क्विंटल/ प्रति हेक्टेयर होती है जिसका बाजारी भाव लगभग 3 से 4 हजार रुपए/ प्रति क्विंटल के आसपास होता है. इस हिसाब से किसान भाई इस फसल से लगभग 6 से 7 लाख रुपए/ प्रति हेक्टेयर आसानी से कमा सकते है.

FAQ- ज्यादातर पूछे जाने वाले सवाल

तोरई का सबसे अच्छा बीज कौनसा है?

तोरई का सबसे अच्छा बीज पूसा नसदार, पूसा चिकनी, पूसा स्नेह, पूसा सुप्रिया, काशी दिव्या और कल्याणपुर चिकनी किस्म सबसे अच्छी किस्म मानी जाती है.

तोरई का बीज कितने दिनों में उगता है?

तोरई के बीज को पूरी तरह से अंकुरित होने में लगभग 5 से 6 दिन लगते है. इसकी खेती में आपको मिट्टी में नमी हमेशा बनाई रखनी है.

तोरई में कौनसा विटामिन होता है?

तोरई में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, Vitamin B1, Vitamin B2, Vitamin B3 और Vitamin C होता है.

तोरई खाने के क्या फायदे है?

तोरई में विटामिन, आयरन, मैग्नीशियम, थायमिन और जिंक का भंडार होता है जोकि शरीर में सूजन को कम करने में मदद करती है.

Leave a Comment